तीन तलाक के बाद अब चार तरह के निकाह पर विचार करेगी सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम बहु विवाह, निकाह हलाला, निकाह मुता और निकाह मिस्यार के खिलाफ दायर की गयी चार याचिकाओं पर केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को नोटिस जारी किया है. यह केस पांच जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया है. याचिकाओं में मुस्लिम समाज में प्रचलित शादी की इन प्रक्रियाओं को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहल तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित कर चुका है. तीन तलाक पर सुनवाई समाप्त करते हुए पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने निकाह हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दों को खुला रखा था.
गौरतलब है कि मुस्लिमों में निकाह हलाला और बहुविवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं दाखिल की गी थी. इन पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है. निकाह हलाला और बहुविवाह को महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ माना जाता रहा है. मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना था कि मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक प्रस्तावित कानून में निकाह हलाला, बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दे को शामिल नहीं किया जाता.
सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला व बहुविवाह को लेकर चार याचिकाएं दाखिल हुयी थी.इनमें नफीसा खान सहित चारों याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगाने और इन्हें असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की थी. नफीसा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं देश के सभी नागरिकों पर एक समान तरीके से लागू होनी चाहिए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक को आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाता है. यही नहीं बहुविवाह को भी धारा 494 के तहत एक अपराध माना गया है. इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि कानून के तहत ये दोनों अपराध की श्रेणी में आते हैं.
बीजेपी लीडर की याचिका
दिल्ली बीजेपी के लीडर व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने भी इस मामले में याचिका दायर की थी. उन्होंनेअपनी याचिका में कहा है निकाह हलाला और बहुविवाह अनुच्छेद- 14 कानून के समक्ष समानता, (15) धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक और (21) (जीवन जीने का अधिकार) तथा लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए.
निकाह हलाला
निकाह हलाला मुस्लिम समाज में पत्नी को तलाक देने के बाद उससे फिर से निकाह करने के लिए एक प्रथा है.दोनों में फिर से निकाह की रजामंदी होने के बाद महिला को किसी अन्य पुरुष से शादी करनी पड़ती है. इस दौरान महिला को दूसरे निकाह से बने पति से शारीरिक संबंध बनाने जरूरी होते हैं. इसके बाद जब दूसरा पति भी महिला को तलाक दे दे, तब वह अपने पहले पति से फिर से निकाह कर सकती है. गौरतलब है कि कई मौलवी निकाह हलाला की दुकान चला रहे थे. पिछले साल कई टीवी चैनलों ने ऐसे मौलवियों का पर्दाफाश भी किया था.
बहुविवाह
मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को कानून के तहत एक से ज्यादा महिलाओं के शादी करने की छूट है. इसकी बदौलत मुस्लिम व्यक्ति चाहे तो एक से ज्यादा पत्नियां रख सकता है.। कई महिला संगठन इसे महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ बताते हैं.। जबकि धर्मगुरु और पुरुषवादी सोच वाले लोग बहुविवाह कानून का न सिर्फ समर्थन करते हैं बल्कि इसे धार्मिक मामला भी बताने से बाज नहीं आते.
निकाह मुता: यह कुछ दिन के लिए की जानी वाली अस्थायी शादी होती है. शिया समुदाय में प्रचलित यह व्यवस्था महिला को कुछ वक्त के लिए आर्थिक संरक्षण देने के लिए बनाई गयी. इसमें एक करार होता है, जिसमें पहले से तय कर दिया जाता है कि शादी कितने दिन के लिए हो रही है. वह वक्त बीतने पर शादी अपने आप खत्म मान ली जाती है. इसके लिए महिला को मेहर के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं.
निकाह मिस्यार: निकाह मुता की तरह यह भी तय वक्त के लिए की जाने वाली शादी है। यह सुन्नी समुदाय में प्रचलित है. इसमें गवाह की मौजूदगी में एक करार होता है. यह लिखित या मौखिक हो सकता है. इसमें पति-पत्नी मर्जी से अपने कुछ अधिकार छोड़ सकते हैं. वे चाहें तो साथ रहना भी जरूरी नहीं है. इसमें भी महिला को मेहर के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं.