आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा की कोर्ट वाले सीन में जज जब फांसी की सजा का फैसला सुनाते हैं तो उसके बाद अपनी कलम की निब को तोड़ देते हैं. क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है? कानून में ऐसा कोई प्रावधान या नियम नहीं है जिसमें जज का निब तोड़ना जरुरी हो लेकिन भावनात्म और प्रतिकात्मक रूप से ऐसी कलम जिसने किसी की मौत लिखी हो उससे वापस उपयोग नहीं करने के लिए निब को तोड़ा जाता है.
क्यों तोड़ी जाती है पेन की निब
बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 में मौत की सजा का प्रावधान है ऐसे मामले की सुनवाई डीजे स्तर के न्यायिक अधिकारी ही सुन सकते हैं सामान्यत: न्यायिक अधिकारी जीवन के लिए फैसला देते हैं. लेकिन जब उनको किसी के जीवन लेने का फैसला पर हस्ताक्षर करना होता है तो उस कलम या पेन का दुबारा उपयोग नहीं करे इसी मकसद से निब को तोड़ा दिया जाता है. फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, डॉक्टर और जल्लाद का होना जरूरी है.
रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में होती है फांसी
सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में कहा था कि रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में ही फांसी की सजा दी जा सकती है. निचली अदालतों में फांसी की सजा मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट भी फांसी की सजा पर मुहर लगा दे तो फिर राष्ट्रपति से दया की अपील की जा सकती है. अगर राष्ट्रपति भी अपील को खारिज कर दे तो फांसी दे दी जाती है.
जल्लाद कैदी के कान में क्या कहता है ?
फांसी देते वक्त जल्लाद कैदी के कान में कहता है कि ‘मुझे माफ कर दो. मैं हुक्म का गुलाम हूं. मेरा बस चलता तो आपको जीवन देकर सत्य मार्ग पर चलने की कामना करता’.
सुबह होने से पहले क्यों देते हैं फांसी
ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि फांसी की वजह से दूसरे कैदी और काम प्रभावित न हो. सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक जिस कैदी को फांसी दी जाती है उसके घरवालों को फांसी की तारीख से 15 दिन पहले खबर देना जरूरी है.
कैदी को जिस फंदे पर लटकाया जाता है वो सिर्फ बिहार के बक्सर जेल में कुछ कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है. अंग्रेजों के जमाने से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही है. मनीला रस्सी से फांसी का फंदा बनता है. दरअसल, बक्सर जेल में एक मशीन है जिसकी मदद से फांसी का फंदा बनाया जाता है. आखिरी इच्छा पूछे बगैर किसी कैदी को फांसी नहीं दी जा सकती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2004 से 2013 के बीच भारत में 1,303 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई.