RBI का खुलासा, बीते पांच सालों में 62 फीसदी नए प्रोजेक्ट्स केवल सात राज्यों में, झारखंड काफी पीछे
RBI द्वारा जारी नये आंकड़ों ने देश में पूंजी निवेश और परियोजनाओं की धीमी गति और लगातार गिरावट का खुलासा किया है. वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक के आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर विभिन्न राज्यों में पूंजी निवेश और परियोजनाओं की स्थिति बताई गई है. इनमें झारखण्ड काफी पीछे है. मतलब RBI की रिपोर्ट भी कैग के आंकड़ों को सही ठहराते हैं. पूंजी निवेश और परियोजना को जमीन पर उतारने के मामले में कई राज्य झारखंड से आगे हैं.
RBI की रिपोर्ट के अनुसार देश के दो बड़े यूपी और बिहार निवेशकों को आकर्षित करने में अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे हैं.
वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक 62% परियोजनाएं केवल गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में केन्द्रित रहीं. इससे यह बात सामने आती है कि देश के औद्योगिक विकास में क्षेत्रीय असमानता काफी है.
निजी कॉरपोरेट निवेश के सन्दर्भ में भी RBI ने 2016 -17 के आंकड़े जारी किए हैं. इसके अनुसार गुजरात में 22.7%, महाराष्ट्र 8.6%, आंध्र प्रदेश 8.2%, मध्य प्रदेश 7.4%, कर्नाटक 6.6%, तेलंगाना 5.5% और तमिलनाडु 4.5% ने सबसे अधिक निवेश प्राप्त किया है.
पिछले वर्ष की तुलना में आंध्र में कम निवेश हुए जबकि गुजरात में निवेश का आंकड़ा बढ़ा है. कुल निवेश का 53.5% केवल पांच राज्यों में हुआ. शेष 24 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर भी यह 46.5% ही रहा.
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र और तमिलनाडु के अलावे सभी राज्यों में ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाओं की ज्यादा हिस्सेदारी है. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में निर्माण क्षेत्र की अधिक परियोजनाएं हैं. कुल परियोजनाओं का यह लगभग क्रमशः 54.3% और 67% है.
आरबीआई रिपोर्ट ने चालू वित्त वर्ष में नियोजित परियोजनाओं के पूंजीगत व्यय में एक महत्वपूर्ण गिरावट का खुलासा किया है. बीते वर्षों में स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर योजना व्यय 2017-18 में 2016-17 के 154,800 करोड़ रुपये के मुकाबले 69,400 करोड़ रुपये हो सकता है. यह 2015-16 में 174,400 करोड़ रुपये था.
साल 2011-12 के बाद से ही इसमें गिरावट दर्ज की जा रही है. 2011-12 में यह 361,800 करोड़ रुपये था.
आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि कॉरपोरेट परफॉरमेंस पर GST और विमुद्रीकरण (demonetisation) का काफी प्रभाव पड़ा है. ऐसा नहीं लगता कि बीते वर्षों की तुलना में इस बार भी स्थिति अच्छी रहेगी.
RBI ने कहा कि लंबित परियोजनाओं के अध्ययन के आधार पर 85,400 करोड़ अतिरिक्त निवेश की दरकार है तभी 2016-17 के तय लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा. हालांकि RBI ने वित्तीय वर्ष 2017-18 आंकड़ों के हवाले से यह भी संकेत दिया कि निवेश की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है. प्रत्यक्ष पूंजी निवेश (FDI) और प्राइवेट निवेश के कारण पूंजी व्यय में गति आ सकती है. पहली तिमाही में नये प्रोजेक्ट्स की अधिक घोषणाएं नहीं हुई हैं मगर विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार हालात बेहतर होने की उम्मीद की जा रही है.
India Inc ने 2016-17 में अधिक निवेश योजना की घोषणा की थी. कुल मिलाकर 922 फर्मों ने 2016-17 में 206,400 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई थी. 2015-16 में 700 कंपनियों ने 135,100 करोड़ रुपये निवेश की घोषणा की थी.
किसी भी परियोजना में पूंजी व्यय प्रोजेक्ट के पूरा होने तक की अवधि को ध्यान में रखकर तय होता है. इसलिए निवेश और खर्च की यह अवधि कई वित्तीय वर्षों तक जारी रहती है. प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में कितने रुपये खर्च किये गए, इस पर भी ध्यान देने की जरुरत है. कुल राशि का 40% यानी 72,800 करोड़ रुपये वर्ष 2016-17 में खर्च किये जाने थे. 23% राशि (42,000 करोड़) 2017-18 में खर्च होने हैं. 20% राशि आगे के वर्षों में व्यय किये जाने हैं.
यह जरूरी नहीं है कि कंपनियां द्वारा घोषित सभी निवेश योजनाएं सफल हो जाएंगे. उनमें से कई योजनाएं सिर्फ कागज पर ही रह जाएंगें. पिछले पांच सालों में इसके कई उदाहरण हैं. GST और विमुद्रीकरण के कारण कई कंपनियों ने अपने प्रोजेक्ट्स को स्थगित कर दिया.
ICRA के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018 की पहली तिमाही में 448 कंपनियों की कुल राजस्व में 5.3% की कमी दर्ज हुई.
वहीं दूसरी तरफ कई बैंक विषम वित्तीय परिस्थितियों से गुजर रहे हैं. वे उद्योगों में अधिक धन निवेश को लेकर सशंकित हैं. RBI के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक साल के दौरान मध्यम उद्योगों में बैंक क्रेडिट जुलाई माह के अंत तक 7.7% घटा है.