सूबे में चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों की जान ले रही है. चिकित्सकों की भारी कमी से लोग अपनी जिंदगी बचाने की जद्दोजहद कर रहे है. स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आज से 15 माह पहले एक बड़ी घोषणा की थी. नौ मई 2016 को धनबाद में एशियन द्वारिका दास जलान सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के शिलान्यास के दौरान सीएम रघुवर दस ने घोषणा की थी कि 2017 तक हर गांव में चिकित्सक मौजूद रहेंगे.
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क्या कहा था सीएम ने और क्या हो रहा
राज्य में डॉक्टरों का टोटा खत्म होगा. मगर 2017 आया और आठ माह बीत भी गये, पर गांवों में अब भी डॉक्टर नहीं हैं. इलाज के आभाव में रोज लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं. गांव की बात तो दूर शहरों के बड़े अस्पतालों में भी डॉक्टर नहीं रहते. स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल यह है कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में खून के बिना मरीज की मौत हो जाती है. सरायकेला में चिकित्सकों की लापरवाही के कारण सड़क पर प्रसव होता है. रिम्स की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. यहां पिछले 28 दिनों में 133 बच्चों की मौत हो चुकी है. राज्य भर में कुल मौतों का आंकड़ा इससे भी आगे है.
राज्य भर से आ रही मौत की खबरें
जमशेदपुर एमजीएम अस्पताल में पिछले 30 दिनों में 60 बच्चों की मौत हो चुकी है. कोई जिम्मेदारी तक नहीं ले रहा. सीएम और स्वास्थ्य मंत्री का ये बयान कि स्वास्थ्य व्यवस्था में जल्द सुधार होगा और सबको सस्ता और सुलभ इलाज मिलेगा, लोगों को बस धोखा ही लगता है. पूरे राज्य से भारी संख्या में मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं. मगर चिकित्सकों, नर्सों, बेडों समेत दवाई से लेकर जांच उपकरणों तक की कमी झारखण्ड के तमाम छोटे-बड़े अस्पतालों में देखी जा सकती है. आलम यह है कि एक ओर जहां डॉक्टरों की कमी के कारण मरीज इधर-उधर भटक रहे हैं. गरीबी के कारण निजी अस्पतालों में महंगे इलाज कराने में ग्रामीण जनता सक्षम नहीं है.
पूरे राज्य में डॉक्टरों की कमी
पूरे राज्य में डॉक्टरों का घोर टोटा है. झारखंड चिकित्सा सेवा के तहत पूरे राज्य में 1684 डॉक्टर विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं जबकि स्वीकृत पद 2112 है. मतलब राज्य में 428 डॉक्टरों की कमी है. झारखंड की लाइफलाइन मानी जानेवाले रिम्स में 387 के मुकाबले सिर्फ 280 डॉक्टर हैं. यहां भी 107 चिकित्सकों की कमी है. नर्सिंग में भी 200 पद खाली हैं जिसे आज तक भरा नहीं जा सका. ऐसा ही हाल राज्य के अन्य दो बड़े अस्पताल एमजीएम जमशेदपुर और पीएमसीएच धनबाद का है. एमजीएम में 113 डॉक्टर तो पीएमसीएच में सिर्फ 74 चिकित्सक कार्यरत हैं. इस कारण चिकित्सकों पर दबाव काफी ज्यादा होता है और वे सही तरीके से अपनी ड्यूटी करने में नाकाम होते हैं.
वों में स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल
शहरी क्षेत्रों में तो सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था निजी अस्पतालों के होने की वजह से थोड़ी ठीक-ठाक है, पर ग्रामीण क्षेत्रों का हाल बहुत बुरा है. कुल 330 सीएचसी में से शायद ही ऐसा कोई सीएचसी हो जहां डॉक्टर सही से ड्यूटी करते हों. यहां ना तो डॉक्टर है और ना ही जरूरी दवाइयां. डॉक्टर और दवा खोजते-खोजते मरीजों की जान चली जाती है. 24 जिलों में से 23 में सदर अस्पताल जर्जर स्थिति में है.
सीएम ने स्नातक पास को ट्रेनिंग देने का किया था वादा
सीएम रघुवर दास ने राज्य के स्नातक पास युवक-युवतियों को तीन-तीन साल की मेडिकल ट्रेनिंग देने की घोषणा की थी लेकिन 15 महीने हो गये पर ट्रेनिंग स्टार्ट नहीं हुई.
सरकारी सेवा देने से कतरा रहे डॉक्टर
राज्य में अगले कुछ वर्षो में छह मेडिकल कॉलेज और खुल जायेंगे. मगर डॉक्टर कहां से आयेंगे? सरकार चिकित्सकों की बहाली की बात कई बार कह चुकी है. लेकिन स्थिति यह है कि यहां के डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में काम करने को तैयार ही नहीं होते. सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर डॉक्टर यहां अपनी सेवायें क्यों नहीं देना चाहते.
राधाकृष्ण किशोर, भाजपा विधायक
मॉनसून सत्र में भाजपा के ही विधायक राधाकृष्ण किशोर ने स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी को इस मामले में निशाने पर लिया. सदन में स्वास्थ्य मंत्री को जवाब देते नहीं बन रहा था.
विकास मुंडा, आजसू पार्टी
सरकार की सहयोगी आजसू पार्टी के विधायक विकास मुंडा भी राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था से नाराज हैं. उनका कहना है कि उनके इलाके में किसी भी अस्पताल में डॉक्टर नहीं रहते. गरीबों का इलाज नहीं हो रहा है. कांग्रेसी विधायक बादल पत्रलेख और जेएमएम विधायक कुणाल षाडंगी ने भी स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल उठाये हैं. उनका यह भी कहना है कि यहां इलाज महंगी हो गयी है और जान सस्ती. मासूमों की जान जा रही है और कोई देखने वाला नहीं है.