सीबीआई को सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने के केंद्र के 2011 के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है. यह केस पहले दिल्ली हाईकोर्ट में दायर किया गया था, लेकिन बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया गया. इससे पहले केंद्र ने कहा था कि इस संबंध में कई याचिकाएं देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर की गई हैं. यह उस वक्त किया गया जब केंद्र ने कहा कि इस बाबत देश भर के कई उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर की गई हैं. वकील अशोक अग्रवाल ने 2011 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी. गौरतलब है कि अग्रवाल ने 2014 में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
बोफोर्स मामले से जुड़े दस्तावेजों की मांगी थी जानकारी
हाईकोर्ट ने जुलाई 2011 में सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी किया था, क्योंकि वकील ने आरोप लगाया था कि केंद्रीय जांच एजेंसी को आरटीआई के दायरे से बाहर इसलिए रखा गया. उन्होंने राजनीतिक तौर पर संवेदनशील बोफोर्स कमीशनखोरी मामले से जुड़े दस्तावेजों के बाबत जानकारी मांगी थी. सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया था कि सीबीआई को आरटीआई के तहत मिली छूट पूरी तरह से मिली छूट नहीं है और इसमें न्यायिक दखल की जरूरत नहीं है. याचिका में कहा गया कि आईबी, रॉ, डीआरआई, ईडी सहित खुफिया एवं सुरक्षा संगठनों को आरटीआई से छूट दी गई है.
आरटीआई अपील को बाधित करने का आरोप
जब एजेंसी ने विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित इनसे जुड़े एक ही तरह के मामलों को सुप्रीम कोर्ट में भेजने की याचिका दायर की तो दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लग गई. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल ताजा अजीर् में अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि केंद्र ने अधिसूचना इसलिए जारी की ताकि बोफोर्स मामले के बाबत मुख्य सूचना आयुक्त, नई दिल्ली के समक्ष लंबित आरटीआई अपील को बाधित किया जा सके. याचिका में कहा गया कि इस मामले में सीआईसी ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता को जरूरी कागजात मुहैया कराए.
9 जून 2011 की अधिसूचना रद्द करने की मांग
याचिका में अग्रवाल ने आरोप लगाया कि पिछली यूपीए सरकार के फैसले का मकसद बोफोर्स घोटाले में मुख्य आरोपी ओत्तावियो क्वात्रोच्ची को बचाना था. कई साल से बोफोर्स कमीशनखोरी मामले को देख रहे अग्रवाल ने 9 जून 2011 की अधिसूचना रद्द करने की मांग करते हुए कहा है कि अधिसूचना जारी करके और सीबीआई को दूसरी अनुसूची में डालने से ऐसा लगता है कि, सरकार कानून की मंजूरी के बगैर सीबीआई के लिए पूरी तरह गोपनीयता का दावा कर रही है.