ऐसा लग रहा है कि विदेश मंत्रालय ने संघ और भाजपा के प्रचार का जिम्मा ले लिया है. 22 सितंबर को विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड एक ई-बुक से यह प्रतीत हो रहा है. दरअसल पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशताब्दी से पहले 22 सितंबर को विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड एक ई-बुक में सिर्फ हिंदुओं को आध्यात्मिक और भाजपा को देश का एकमात्र राजनीतिक विकल्प बताया गया है. वेबसाइट के होमपेज पर ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज्म’ (एकात्म मानववाद) शीर्षक से एक ई-बुक अपलोड किया. इस बुकलेट में खुलकर भाजपा और संघ का महिमामंडन किया गया है. द वायर ने पूरे तथ्यों के साथ इसपर विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
आजाद भारत के शुरुआती इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया
द वायर के मुताबिक काफी स्तरहीन तरीके से लिखी और संपादित की गई यह ई-बुक, जिसे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय के आधिकारियों की कड़ी मेहनत का नतीजा बताया है. द वायर ने लिखा है कि यह ई-बुक आजाद भारत के शुरुआती इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है और बेहद शर्मनाक तरीके से भारतीय जनता पार्टी का वर्णन देश के एकमात्र राजनीतिक विकल्प के तौर पर करती है.
ई-बुक की यह कुछ पंक्तियां विवादास्पद हैं.
द्वि-राष्ट्रवाद की छाया ने जब भारत की आजादी की लड़ाई को आवृत्त कर लिया था, तब 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन प्रारंभ किया. वे उत्तम संगठक, साहित्यकार, पत्रकार एवं वक्ता के नाते संघ-कार्य को बल देते रहे.’ (मूल हिंदी पाठ से )
‘देश के लोकतंत्र को एक सबल विपक्ष की आवश्यकता थी; प्रथम तीन लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनसंघ एक ताकतवर विपक्ष के तौर पर उभरा. वह विपक्ष कालांतर में (आगे चलकर) एक विकल्प बन सके, इसकी उन्होंने संपूर्ण तैयारी की.’ (मूल हिंदी पाठ से)
‘1951 से 1967 तक वे भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे. 1968 में उन्हें अध्यक्ष का दायित्व मिला. अचानक उनकी हत्या कर दी गई.
भाजपा ने खुलकर किया है अपना महिमामंडन
द वायर ने लिखा है कि अंग्रेजी अनुवाद की तुलना में मूल हिंदी में लिखा गया वाक्य कहीं खुलकर भारतीय जनता पार्टी का महिमामंडन करता दिखाई देता है. ‘भाजपा द्वारा ही भारतीय जनता पार्टी को देश का एकमात्र राजनीतिक विकल्प बताया गया है. क्या यह महज खराब लेखन और अनुवाद का मामला है या यहां करदाताओं के पैसे से भाजपा को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है?
क्या विदेश मंत्री को सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग की छूट है
पत्रिका के मुताबिक क्या विदेश मंत्री का काम यह घोषणा करना है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी देश का राजनीतिक विकल्प है? क्या सत्ताधारी दल को दलगत राजनीतिक प्रोपगेंडा का प्रचार-प्रसार करने के लिए जनता के पैसे और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग करने की छूट है? उपाध्याय ने कभी कोई सार्वजनिक पद नहीं संभाला. वे कभी संसद या राज्य विधानसभा का एक चुनाव तक नहीं जीते. उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया. उनकी प्रसिद्धि का एकमात्र दावा इस आधार पर किया जा रहा है कि उन्होंने एक ऐसे राजनीतिक दल का नेतृत्व किया, जिसके वंशज आज भारत पर शासन कर रहे हैं.
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव कमजोर करने वाला दस्तावेज
इस ई-बुक की प्रस्तावना सुषमा स्वराज ने लिखी है, जिनकी छवि राजनीतिक संयम और निष्पक्षता का ख्याल रखने वाले नेता की है. निश्चित तौर पर वे विदेश मंत्रालय को भाजपा का मुखपत्र बन जाने की इजाजत नहीं दे सकतीं और आखिर उनके मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के विवेक को क्या हुआ है, जिनका कर्तव्य देश की सेवा करना है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी की. आखिर कैसे उन्होंने ऐसे दस्तावेज के प्रकाशन की इजाजत दी, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को कमजोर करने वाला है?
पहले तीन लोकसभा चुनावों की हकीकत तोड़-मरोड़ कर की गयी पेश
इस ई-बुक की भूमिका भी पहले तीन लोकसभाओं की हकीकत को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है. इसमें दावा किया गया है कि ‘पहले तीन लोकसभा चुनावों में भारतीय जनसंघ एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरा.’ हकीक़त ये है कि 1951-52, 57 और 62 में भारतीय जनसंघ को क्रमशः 4, 4 और 14 सीटों पर जीत हासिल हुई. इस दौर में कांग्रेस का असली विपक्ष भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी था, जिसने इन चुनावों में क्रमश: 16, 27 और 29 सीटों पर जीत हासिल की थी.
भाजपा और आरएसएस की सोची-समझी साजिश का हिस्सा है ई-बुक
द वायर के मुताबिक विदेश मंत्रालय की यह ई-बुक भाजपा और आरएसएस की एक बड़ी सोची-समझी कवायद का हिस्सा है. इसका मकसद अपने ऊपर एक तरह का इज्जतदार वैचारिक लबादा डालना है. उनके असली गुरु- केबी हेडगेवार और एमएस गोलवलकर काफी प्रसिद्ध होने के साथ-साथ इतने विवादित भी हैं कि वे गंभीर सवालों और जांच-पड़ताल का सामना नहीं कर पाएंगे, लेकिन उपाध्याय का जीवन और उनके विचारों से ज्यादातर लोग नावाकिफ हैं. इस तथ्य का इस्तेमाल संघ के हिंदुत्व के दर्शन को ज्यादा बड़े समुदाय के बीच स्वीकार्य बनाने और उसे संभवतः एक अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति दिलाने के लिए किया जा सकता है.