2019 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होने की संभावना नहीं दिख रही है. चुनाव आयोग के एक साथ दोनों चुनाव कराने के पर्याप्त संसाधन के दावे के बीच यह खबर चौंकाने वाली है. द इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक निर्वाचन सदन के अंदरूनी सूत्र ने एक पत्र की ओर इशारा किया है, जो कानून मंत्रालय को भेजा गया था.
आयोग ने 5 मई 2016 को कानून और न्याय मंत्रालय को यह पत्र भेजा था, जहां उसने कहा था कि आयोग को एक साथ चुनावों के लिए कम से कम 25 लाख वीवीपैट मशीनों की आवश्यकता होगी. उधर अंदर की खबर यह है कि चुनाव आयोग को सितंबर 2018 तक केवल 16 लाख मशीनें ही मिल पायेंगी “अगर 2019 में चुनाव होने हैं तो भी कुछ महीनों में मशीनों की आपूर्ति नहीं की जा सकती, क्योंकि निर्माताओं का मैन्यूफैक्चरिंग का काम चल रहा है.
राजनीतिक दलों में साथ चुनाव कराने को लेकर नहीं बनी आम सहमति
हालांकि, इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच एक आम सहमति सामने नहीं आई है. वैसे एक साथ चुनाव आयोजित करने से कई बार चुनावों का भारी खर्च बचा है. पहले भी राजनेता एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का सुझाव देते रहे हैं. वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 2012 में एक ब्लॉग में एक साथ चुनाव आयोजित करने का सुझाव दिया था.
वहीं इस बार मार्च 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर सभी पार्टियों की मीटिंग बुलाकर चर्चा की बात कही थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी 18 सितंबर 2017 को दोनों चुनाव एक साथ कराने का आइडिया दिया था.
निर्वाचन आयोग का दावाः 2018 तक लोस-विस चुनाव साथ कराने को तैयार
गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह सितंबर 2018 तक लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए तैयार है. इसके लिए उसके पास पर्याप्त मात्रा में चुनाव संबंधी सामान मौजूद है. बुधवार को केंद्रीय निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि इवीएम मशीनों की आपूर्ति का ठेका दो सरकारी कंपनियों को दिया गया है और मशीनों की आपूर्ति पहले ही शुरू हो चुकी है.
रावत ने कहा कि वीवीपीएटी खरीदने के लिए 3400 करोड़ रुपए मिले हैं और ईवीएम मशीनें खरीदने के लिए 12,000 करोड़ रुपए मिले हैं. उन्होंने कहा कि सितंबर 2018 तक आयोग को 40 लाख मशीनें मिल जाएंगी.