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रोहिंग्या समुदाय के लोगों के खिलाफ कार्वाई की विश्वभर में कडी निंदा हो रही है. संयुक्त राष्ट्र ने इसे जातीय सफाया कहा है वहीं फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने इसे जाति संहार करार दिया है. शेख हसीना ने कहा कि म्यामां को हिंसा और जातीय सफाये की कार्वाई बंद करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के तथ्यात्मक खोज अभियान को मंजूरी देने के लिए सहमत होना चाहिए, विस्थापितों की वापसी सुनिश्चित करनी चाहिए और रोहिंग्या समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का सुझाव देने वाली रिपोर्ट को लागू करना चाहिए. इस खास समुदाय के प्रति हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया हुई जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को हिंसा बंद करने की मांग करनी पडी. इन सुरक्षित क्षेत्रों के निर्माण के लिए सुरक्षा परिषद की मंजूरी जरुरी है, जिसमें शामिल चीन के पास वीटो का अधिकार है. चीन म्यामां के पूर्व जुंटा का कडा समर्थक है. गौरतलब है कि म्यामां में 11 लाख की आबादी वाले रोहिंग्या समुदाय के लोग वर्षों से भेदभाव के शिकार रहे हैं, इन्हें नागरिकता से वांचित रखा गया है. हांलाकि इनमें से अनेक लोग देश में लंबे समय से रह रहे हैं.