रायन पब्लिक स्कूल में उस मासूम के साथ जो हुआ वह दरिंदगी थी। मां बाप क्या जिस किसी इंसान ने देखा उसका कलेजा फट गया होगा। मीडिया के दबाव और परिजनों की लड़ाई की वजह से कार्रवाई भी हो रही है। प्रदेशों के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के नुमांइदों के बयान भी आ रहे हैं लेकिन एक कसक है। कसक यह कि इस दरिंदगी के विरोध में ज्यादा लोग सड़कों पर नहीं उतरे। क्या दिल्ली का मिडिल क्लास कभी यह जानना चाहेगा कि लोग क्यों नहीं उतरे जबकि फर्जी बाबा लाखों को सड़क पर उतार देते हैं? मैं अपनी सीमित समझ के हिसाब से समझाता हूं।
सर दरअसल दिक्कत यह हो गई कि जो अक्सर सड़क पर उतरते हैं वे इस घटना से दुखित तो हुए पर कनेक्ट नहीं कर पाए यानी गरीब। आपने खुद से कभी यह पूछा कि जब सरकारी स्कूलों में मिड डे मील खाकर मासूम बीमार पड़े और मरे तो आप सड़कों पर उतरे क्या? सरकारी अस्पतालों में लापरवाही से बच्चों की बीमारी बिगड़ने के बाद उन्हें कंधे पर उठा कर इधर से उधर भागते बेचारे बापों की हजारों लाखों तस्वीरें मीडिया ने आपको दिखाईं। क्या आपने कभी सरकारों से उनकी आंख में आंख डालकर पूछा या दिल्ली को जाम कर कहा कि जनता तो तब उठेगी जब अस्पतालों की तस्वीर बदलेगी?
सर आप तो वो हैं कि जब किसी आंदोलन की वजह से दिल्ली में जाम लगता है तो आप अपनी ac गाड़ी में बैठ चिलचिलाती धूप में खड़े प्रदर्शकारियों को कोसते हुए उन्हें ऑफिस में देर से पहुंचने का दोषी मानते हैं। सर आप तो वो हैं जो तमाम मजदूर संगठनों को विकास के राह में रोड़ा मानते रहे। संगठन मरते रहे और आपने अपनी ctc पर फोकस बनाये रखा।
सर आंदोलन और उस दौरान जमा होने वाली भीड़ के लिए संगठनों की जरूरत होती है। आप तो वह हैं जो जिंदगी की दौड़ में कब अकेले रह गए खुद को भी पता नहीं चला। सर कवि आपके लिए ही लिख गया है कि,
‘फिर वे मेरे लिए आये
और तब तक कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता।’
कुछ बुरा लगा हो तो माफ कीजियेगा पर देर अभी भी नहीं हुई है।
By
Ameesh Rai