झारखंड की न्यायिक सेवा के 12 अधिकारियों को आखिरकार सेवा से बाहर जाना पड़ा. इनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप थे. हाईकोर्ट की अनुशंसा पर सरकार ने इन्हें अनिवार्य सेवा निवृत्ति दे दी. सेवा मुक्त किए गए झारखंड के इन बारह जज के ऊपर अपने कार्यों का कथित रूप से सही तरीके से निष्पादन नहीं करने का आरोप है.
झारखंड हाईकोर्ट की निगरानी द्वारा इन अधिकारियों के संबंध में गोपनीय सर्विस रिकॉर्ड तैयार किया गया. इनके कामकाज पर हाईकोर्ट को संतुष्टि नहीं थी. लिहाजा, इन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई. हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने सरकार को अनुशंसा की थी.
सरकार ने मुख्यमंत्री रघुवर दास की सहमति के बाद सेवानिवृत्ति की अधिसूचना जारी कर दी. लोहरदगा के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश अनिल कुमार सिंह नंबर 2, डाल्टनगंज के गिरीश चंद्र सिन्हा, गढ़वा के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश गिरिजेश कुमार दुबे, पाकुड़ के जिला एवं अपर सत्र न्यायधीश ओम प्रकाश श्रीवास्तव, लातेहार के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार पांडेय शामिल हैं.
इनके अलावा चाईबासा के सीजेएम राम जियावन, साहेबगंज के सीजेएम रामजीत यादव, लातेहार के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश उमेशानंद मिश्रा, गढ़वा के जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव अशोक कुमार सिंह, गोड्डा के कुटुम्ब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अरूण कुमार गुप्ता 2, हजारीबाग के श्रम न्यायालय के पीठासीन पदाधिकारी राजनंदन राय को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई.
कार्मिक विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है. सरकार चूंकि नियोक्ता के अलावा स्थापना देखती है, इसलिए यह अधिसूचना जारी की गई. इन सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों को तीन माह के नोटिस के बदले तीन माह का पूर्ण वेतन दिया जाएगा. इससे पहले भी झारखंड हाईकोर्ट ने लगभग 13 साल पहले न्यायिक अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की अनुशंसा की थी. सरकार ने इन्हें हटा दिया था.
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