बेचारी झारखंड पुलिस : दिन में बेचवाना पड़ता है दारू, रात में दारुबाजों पर कार्रवाई
दारू को लेकर झारखण्ड पुलिस असमंजस में है. वजह है सरकार की नीति और अपनी ड्यूटी का दबाव. पिछले दिनों झारखण्ड सरकार ने खुद दारू बेचने का फैसला लिया. इसके बाद से ही पुलिस के जवानों को दिन और रात में दो अलग-अलग रूप धरने पड़ते हैं. दिन में पुलिस शराब की दुकानों पर व्यवस्था बहाली में तैनात दिखती है तो रात में शराब पीकर वाहन चलाने वालों की चेकिंग करती नज़र आती है. पुलिस की इस दोहरी छवि और एक ही साथ दो बिलकुल विपरीत कामों का संदेश जनता के बीच अच्छा नहीं जा रहा.
पुलिस की नैतिक और अनैतिक छवि
लोगों का कहना है कि एक तरफ तो सरकार खुद दारू की दुकान खोलकर बैठी है और दूसरी तरफ शराबियों पर कार्रवाई. यह तो हास्यास्पद है. झारखण्ड सरकार द्वारा शराब बेचे जाने से सरकार की छवि तो बदनाम हुई ही, अब सरकार की नीति को लागू कराने में पुलिस की भी दोहरी और असमंजसकारी छवि बन रही. इस कारण खुद पुलिस वाले भी काफी परेशान हैं. उन्हें ना खुद पर हंसते बन रहा और ना ही रोते.
दारू बिक्री की व्यवस्था बहाली में तैनात झारखण्ड पुलिस
एक तस्वीर में पुलिस सरकारी दारू दुकान पर खरीदारों को लाइन में खड़ी कर शराब खरीदवा रही है. शराब दुकानों पर पुलिस की तैनाती इसलिए की गई है ताकि वहां मारपीट ना हो. सरकारी दारू दुकान के खुलने और बंद होने की टाइमिंग तय है. इसलिए जाम के शौकीन अक्सर जल्दीबाजी में दूसरे खरीदारों से उलझ जाते हैं. मारपीट तक शुरू हो जाती है. चूंकि शराब दुकानों की संख्या कम हो गई है इसलिए सरकारी शराब बिक्री केन्द्रों पर काफी भीड़ उमड़ पड़ती है. इसलिए खरीदारों की भीड़ को काबू में रखने के लिए इन सरकारी शराब दुकानों पर पुलिस की तैनाती की गई है.
अल्कोहल टेस्टिंग करती झारखण्ड पुलिस
वहीँ दूसरी तस्वीर में वही झारखण्ड पुलिस रात में वाहन चालकों की ‘ब्रीथ एनालाइजर’ से अल्कोहल टेस्टिंग करती दिखती है. यानी यह सुनिश्चित किया जा रहा कि कोई व्यक्ति शराब पीकर वाहन ना चलाये. इस दोहरी और परस्पर विरोधाभासी ड्यूटी से पुलिस के जवान भी परेशान और चिंतित हो गए हैं. वे कहते हैं कि हम तो आदेश के गुलाम हैं. फैसला सरकार का है पर बदनाम तो हम ही हो रहे ना.