भाइयों और बहनों- मैंने दुख के सिर्फ 50 दिन मांगे हैं.
नोटबंदी से लोगों को परेशानी जरूर होगी. लेकिन कभी-कभी देश की भलाई के लिए कुछ परेशानी भी झेल लिया करो मित्रों. यही कहा था हमारे प्रधानमंत्री ने 2016 के अंतिम महीनों में.
50 दिन क्या अब दस माह बीत चुके हैं. और नोटबंदी के अच्छे-बुरे नतीजों का मूल्यांकन तरह-तरह से किया जा रहा. पीएम के आह्वान पर लोगों ने देशहित में परेशानियों का भी डंटकर सामना कर लिया. मगर उस नोटबंदी का हमारे देश और अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छा असर पड़ा, इसका जवाब सरकार को अब देते नहीं बन रहा.
नोटबंदी से हुए फायदों का हिसाब
करीब दस माह बाद आरबीआई ने नोटबंदी संबंधी आंकड़े जारी किये. उसी को आधार बनाकर विपक्षी पार्टियां ने नोटबंदी को आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला करार दे दिया है. सरकार बैकफूट पर है और बचाव में कोई ठोस तर्क नहीं आ रहा. कांग्रेस की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि नोटबंदी से सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को 2.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने इस आधार पर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से माफी मांगें.
प्रमुख वाम दल माकपा ने भी सरकार को नोटबंदी मामले में घेर लिया है. पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि नोटबंदी का गरीबों, युवाओं और मेहनतकश जनता पर बहुत बुरा असर पड़ा है. इन सबका जिम्मेवार मोदी सरकार की आर्थिक कुप्रबंधन है. बड़े नोटों को वापस लेने से धन्नासेठों पर तो कोई असर नहीं हुआ मगर गरीब जनता काफी परेशान हुई.
भाजपा ने अपने अवैध धन को किया वैध
कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने भाजपा पर आरोप लगाया कि विमुद्रीकरण लोगों की आंखों में धुल झोंकने की चाल थी. दरअसल इसके जरिये सरकार ने अपने अवैध रुपयों को वैध बनाने के लिए गलत लोगों की मदद की. जबकि देश की जनता से झूठ कहा गया कि इससे देश को बड़ा फायदा होगा. भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर नकेल कसेगा. यह सारा किया कराया प्रधानमंत्री मोदी का है. नोटबंदी पीएम का व्यक्तिगत निर्णय था.
झूठ बोलकर देश को ठगा
कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी पर देश को अंधेरे में रखा. लोगों के साथ विश्वासघात किया. विपक्ष ने भाजपा सरकार पर वार किया कि मोदी ने तरह-तरह के वायदे किये थे जैसे;
– कालेधन का पता लगाया जा सकेगा
– भ्रष्टाचार पर नकेल
– आतंकवादियों के धन आपूर्ति पर नियंत्रण
– जाली नोटों के चलन से निजात
इनमें से कोई भी दावा पूरा नहीं हो सका. अब प्रधानमंत्री अपनी विश्वनीयता खो चुके हैं. एक हजार और पांच सौ रुपये के 99 फीसदी नोट वापस आ गए हैं तो फिर कालाधन कहां है. नोटबंदी से जितना फायदा नहीं हुआ उससे अधिक हुआ. नये नोटों की छपाई पर हजारों करोड़ रुपये बर्बाद कर दिए गए. कालेधन और आतंकी धन का प्रवाह कहां से होता है यह भी पता नहीं लगाया जा सका.
नोटबंदी के कारण जिन्होंने जिन्दगी खोई, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा
आरबीआई ने ने 30 अगस्त को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया कि नोटबंदी के बाद बैंकों को 15.28 लाख करोड़ रुपये यानी 99 प्रतिशत बंद हुए नोट वापस मिल गए हैं. कांग्रेस का कहना है कि जब 99 प्रतिशत धनराशि वापस लौट गई है तो प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसला का असर कहां है. क्यों पीएम बार-बार बयान बदल रहे हैं.
नोटबंदी के बाद दर्जनों लोग मारे गए थे और कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. बैंकों से अपना पैसा पाने के लिए लोगों को लंबी लंबी कतारों में लगना पड़ा और कई दिन तक तकलीफें उठानी पड़ीं. कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि यह किसी अन्य देश में हुआ होता तो प्रधानमंत्री अपने पद पर नहीं होते.
कहां हैं कालेधन के तीन लाख करोड़
कांग्रेस ने कहा कि पीएम ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि तीन लाख करोड़ रुपये के कालेधन का पता चला है. लेकिन यह नहीं बताया कि कालेधन की यह राशि कहां से आई. मोदी सरकार उन कंपनियों और व्यक्तियों की सूची को सार्वजनिक करें, जिनके पास अघोषित धन है.
नोटबंदी के कारण जीडीपी में 3 फीसदी गिरावट
विपक्ष के अनुसार भाजपा के कार्यकाल में देश के जीडीपी दर में लगातार गिरावट आई है. इस गिरावट की वजह नोटबंदी का लापरवाह फैसला है. मोदी के शासनकाल में पिछली छह तिमाहियों में जीडीपी विकास दर 9.2 प्रतिशत से गिरकर 5.7 प्रतिशत पर आ गया. भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ी गिरावट आई. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री के अहंकार के कारण देश का नुकसान हुआ और वित्त मंत्री क्षतिपूर्ति करने में नाकाम रहे.
विकास दर बेहद ख़राब
माकपा के येचुरी ने ट्वीट किया कि जीडीपी के ये अंक वास्तव में बेहद खराब हैं. यह मोदी सरकार के पिछले तीन सालों में लगातार आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा है. नोटबंदी ने इसे और भी खराब कर दिया. नोटबंदी के प्रभाव के चलते विनिर्माण सुस्त हो गया और उसके बाद जीएसटी का दौर आया. आर्थिक वृद्धि दर में हम चीन से काफी पीछे जा चुके हैं. इन सबके पीछे नोटबंदी ही सबसे प्रमुख कारण है.
वर्ष 2013-14 में विकास दर 6.4 प्रतिशत रही थी.
2016-17 में देश की विकास दर 7.1 प्रतिशत रही है. 2015-16 में यह 8 प्रतिशत थी. नोटबंदी के ठीक बाद की तिमाही में विकास दर घटकर मात्र 6.1 प्रतिशत रह गई थी जो इसके बाद अप्रैल-जून की तिमाही में घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है.
सकल मूल्यवर्धन में भी गिरावट
एक जुलाई को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू की गई. अब कंपनियां उत्पादन के बजाय पुराना स्टॉक निकालने पर ध्यान दे रही हैं. इस कारण विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) भारी गिरावट के साथ 1.2 प्रतिशत रह गया है. जबकि एक साल पहले समान तिमाही में यह 10.7 प्रतिशत रहा था. खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर अपने निचले स्तर तक पहुंच चुकी है. इसकी वजह जीएसटी का क्रियान्वयन है.