पश्चिम बंगाल में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन मुहर्रम के बाद कराने के आदेश को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने राज्य की ममता बनर्जी सरकार से कहा है कि जब आप इस बात का दावा कर रहे हैं कि राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव है तो फिर आप खुद 2 समुदायों के बीच सांप्रदायिक विभेद पैदा करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि दुर्गा पूजन और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है. उन्हें साथ रहने दीजिए. अब इस मामले में कोर्ट गुरुवार को फैसला सुनाएगा.
हाईकोर्ट के दखल के बाद बढ़ायी गयी थी समय सीमा
इससे पहले हाईकोर्ट के दखल के बाद ममता बनर्जी सरकार को मूर्ति विजर्सन की तय समय सीमा के फैसले को बदलना पड़ा था. राज्य सरकार ने विजयदशमी के दिन विसर्जन की समय सीमा जो पहले 6 बजे तक निर्धारित कर दी गयी थी, उसे बढ़ाकर रात 10 बजे तक कर दिया गया था.
ममता के ट्वीट को लेकर दायर की गयी याचिका
विसर्जन पर पाबंदी को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट में ममता बनर्जी के खिलाफ याचिका दायर की गई थी. याचिका ममता बनर्जी के 23 अगस्त को किए गए ट्वीट को केंद्र में रखकर किया गया था. जिसमें दशमी के दिन 6 बजे तक ही विसर्जन की इजाजत दी गई थी, क्योंकि अगले दिन मुहर्रम है. लिहाज़ा, विसर्जन पर रोक लगा दी गई थी और विसर्जन 2 तारीख से किए जाने के आदेश दिए गए थे.
सदभाव बिगड़ने की आशंका जतायी गयी
ट्वीट के बाद एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने याचिका दायर की थी. जिसमें कहा गया कि मुख्यमंत्री के ट्विटर अकाउंट के लाखों फॉलोवर हैं और ये समुदाय विशेष के तुष्टिकरण के लिए बड़े समुदाय के धार्मिक रस्म रिवाज के साथ ठीक नहीं किया जा रहा है. इससे भावनाएं आहत होने के साथ सद्भाव बिगड़ने की भी आशंका है. साथ ही संविधान की धारा 14, 25 और 26 का उल्लंघन भी है.
पिछले साल भी तुष्टीकरण की नीति पर ममता सरकार को लगी थी फटकार
2016 में भी ममता बनर्जी के इसी तरह के आदेश पर मामला कोर्ट में गया था. तब कोर्ट ने सरकार को फटकार लगते हुए कहा था कि ये तुष्टीकरण की नीति है. कोर्ट ने कहा था कि राजनीति को धर्म से न जोड़े. कोर्ट ने पिछली साल ये भी कहा था कि 1982 और 1983 में दशमी और मुहर्रम इसी तरह एक दिन आगे पीछे पड़ा था तब तो कोई पाबंदी नहीं लगाई गई थी.