राज्य में जमीन का सारा सिस्टम ऑनलाइन होगा. घर बैठे लोग रसीद काट सकेंगे. मयूटेशन के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी. कुछ ऐसा ही सोच कर राज्य में सरकार ने जमीन से जुड़े सारे मामले को ऑनलाइन करा दिया. लेकिन, हालात राज्य भर के ऐसे हैं कि म्यूटेशन 10 फीसदी ही हो पा रहा है. रसीद कट नहीं पा रही है. राज्य की जनता परेशान है. ना कुछ अधिकारी कर पा रहे हैं और ना ही सरकार मामले में रुची लेकर सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रही है. ऐसा सब सरकार की गलत रणनीति की वजह से हो रहा है.
आखिर क्या है परेशानी
जमीन से जुड़े सारे मामले को ऑनलाइन कराने के लिए पहले सर्वे कराया गया. फिर एक सॉफ्टवेयर डेवलप कर सारा प्रोसेस ऑनलाइन करा दिया गया. सर्वे में रिकॉर्ड तो सरकार के पास ऑनलाइन हो गए. लेकिन खतियान का ऑनलाइन रिकॉर्ड नहीं बन पाया. दरअसल, झारखंड के ज्यादातर जिले के खतियान रखे-रखे सड़ चुके हैं. उनमें दीमक लग चुका है. ऐसे में उन्हें पढ़ा या समझा जाना मुमकिन नहीं है. इसलिए इसका रिकॉर्ड नहीं बन पाया. अब सरकार ने नयी स्कीम के तहत ऑनलाइन रसीद काटने वक्त खतियान को टैग कर दिया है. जैसे ही रसीद काटने के लिए प्रोसेस शुरू होता है. सॉफ्टवेयर खतियान की जानकारी साझा करने को कहती है. जो रिकॉर्ड में है ही नहीं. ऐसे में लोग अपना बकाया देख तो सकते हैं. लेकिन उसे अदा नहीं कर सकते और रसीद नहीं कटा सकते.
जीएम लैंड बचाने के लिए किया ऐसा, लेकिन रणनीति गलत
सरकार ने ऐसा इसलिए किया ताकि जीएम लैंड की रसीद लोग ना कटवा सके. लेकिन, ऑनलाइन स्कीम सही तरह से कारगर साबित नहीं हो पाया. सरकार चाहती तो पहले की ही तरह जितनी भी जीएम लैंड हैं उसे अंचल स्तर से ही उसके रिकॉर्ड को लॉक करवा देती. जैसे ही कोई जीएम लैंड की रसीद कटवाने की कोशिश करता तो वो रिकॉर्ड आता ही नहीं. ऐसे में जीएम लैंड भी बचती और सही रैयतों को परेशानियों भी दूर हो जाती.
वरिष्ठ सीआई और राजस्व कर्मी से सरकार का कम्यूकेशन गैप
जमीन का मामला शुरू से ही काफी पेचीदा माना जाता है. इसे पूरी तरह से समझने में एक आम आदमी को कापी परेशानी होती है. सरकार ने झारखंड बनने से बाद से ही कभी अंचल स्तर पर या ब्लॉक स्तर पर काम करने वाले वरिष्ट सीआई या राजस्व कर्मी के साथ मिलकर कोई सेमिनार किया ही नहीं. सरकार की तरफ से हर बार फरमान की तरह रणनीति थोपी जाती रही है. जिसे जमीनी हकीकत देने वाले सीआई और राजसस्व कर्मियों को काफी परेशानी होती है. ऑनलाइन सिस्टम बहाल करने से पहले भी सरकार ने ना ही किसी तरह का कोई सेमिनार किया और ना ही सीआई और राजस्व कर्मियों को सही तरह की ट्रेनिंग दी गयी.
झारखंड में नहीं है बिहार की तरह व्यवस्था
जिला स्तर पर जमीन मामले को लेकर सबसे बड़ा अधिकारी एसी यानि एडिशनल कलेक्टर होता है. वो एसी बनने से पहले या तो डीटीओ (जिला परिवहन अधिकारी), एसडीओ (जिला खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी), नगर आयुक्त या फिर किसी और पद पर होते हैं. ऐसे में एसी बनने के बाद जमीन से जुड़ा मामला समझने में ही उन्हें काफी समय लग जाता है. झारखंड में बीडीओ सीओ बन जाता है और सीओ साहब बीडीओ बन जाते हैं. एक ही सेक्टर में प्रमोशन ना होने की वजह से लोगों के काम और विकास पर काफी असर पड़ता है. बिहार ने झारखंड से अलग होते ही अपना पैटर्न बदल दिया है. किसी भी अधिकारी का प्रमोशन बिहार में एक ही सेक्टर में होता है. वहां नियुक्ति के लिए भी बीपीएससी की तरफ से विभागवार आवेदन निकाला जाता है. ऐसे होने से एक सेक्टर में अधिकारी अच्छा काम कर पाते हैं.