श्री कष्ण हिंदू धर्म के संपूर्ण अवतार कहे जाते हैं. उन्हें एक बेहतरीन राजनेता और 64 कलाओं का स्वामी भी माना गया है. जन्माष्टमी श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? कैसे उनके यदुवंश का नाश हुआ? आइए आपको बताते हैं श्री कृष्ण की मृत्यु् और यदुवंश के विनाश के कारण.हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को इस संपूर्ण चराचर जगत के सृजनहार, पालनकर्ता और सहांरक के रूप में देखा गया है. हिंदू धर्म के अनुसार जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी से अधर्म का नाश करते हैं.अब तक हिंदू धर्म में जितने भी अवतार हुए हैं वह केवल और केवल विष्णु के ही हैं, और अब तक श्री हरि विष्णु 10 अवतारों में इस पृथ्वी पर आ चुके हैं. इनमें मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, मोहिनी अवतार, वराहावतार, नरसिंहावतार, वामन् अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्णावतार, यह विष्णु का आखिरी अवतार था, जो पृथ्वी पर अवतरित हुआ, इस अवतार में विष्णु ने अपना विराट स्वरूप/विश्वरूप धारण किया था।, जबकि इसके बाद वे कल्कि अवतार में आएंगे.
कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं. सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं. ब्रह्मपुराण के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे और इसे ही जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है.
सभी को कृष्ण जन्मो्त्सव यानी की जन्माष्टमी के बारे में पता है, लेकिन क्या, आपको पता है कि श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? कैसे श्री कृष्ण के संपूर्ण यदुवंश का नाश हो गया था?
दरअसल, श्री कृष्णु की मृत्यु और उनके संपूर्ण यदुवंश के विनाश का कारण बना कौरवों की मां गांधारी का वह श्राप, जो उन्होंने महाभारत के युद्ध के बाद श्री कृष्ण को दिया था. गांधारी ने इस पूरे महाभारत के युद्ध के लिए श्री कृष्ण को दोषी ठहराते हुए कहा था- जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा.
गांधारी के श्राप ने अपना काम किया. शाप के बाद श्रीकृष्ण जब द्वारिका लौटे तो वे यदुवंशियों को लेकर प्रभास क्षेत्र में पहुंचे लेकिन कुछ दिनों बाद महाभारत-युद्ध की चर्चा के प्रभाव तक ने अपना काम किया और सात्यकि और कृतवर्मा में दोनों झगड़ पड़े.
सात्यकि ने कृतवर्मा का सिर काटा, जिसकी परिणिति बड़े युद्ध में सामने आई. सभी समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे को मारने लगे. इसी इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवंशी मारे गए थे, केवल बब्रु और दारूक ही बचे रह गए थे. इस तरह यदुवंश का नाश हो गया. इधर, यदुवंश के नाश से कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी ने भी देह त्याग दी, और उसके बाद जब एक दिन श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम के बहेलिये ने जो वहां हिरण के शिकार के लिए आया था, श्रीकृष्ण के पैरों के तलवों को हिरण का मुख समझ कर तीर चला दिया. तीर श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा.
इसके बाद जरा को बहुत पश्चाताप हुआ और उसने जब क्षमायाचना की तो श्रीकृष्ण ने बहेलिए से कहा कि तूने वही काम किया है, जो विधि में नियत था. अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा. इस तरह श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण और बलराम की देह समाप्त हो जाने के बाद उनके प्रियजनों ने दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की सभी पत्नि यां आदि सभी ने देह का त्याग कर दिया.
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