एंबुलेंस बिना मर रहे मरीज, एंबुलेंस बनने से पहले ही सड़ गयीं सरकार की 100 से अधिक गाड़ियां
गुमला में एक पिता को अपने बच्चे की लाश गोद में उठाकर घर तक लानी पड़ी क्योंकि अस्पताल में एंबुलेंस नहीं था. चांडिल में एक महिला की प्रसव के दौरान सड़क पर ही मौत हो जाती है क्योंकि उसे अस्पताल तक ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिलता. ऐसा नहीं है कि सरकार के पास एंबुलेंस नहीं है. एंबुलेंस तो है, वो भी 100 से ज्यादा. सभी की सभी बिलकुल ब्रांड न्यू हैं. लेकिन, जनता के किसी काम की नहीं.
झारखंड, उप्र की सरकारों की आपराधिक लापरवाही से गयी बच्चों की जान
दो साल से सड़ रहे हैं ये एंबुलेंस
महानगरों की तर्ज पर झारखंड में भी एंबुलेंस सेवा की शुरूआत करने की कोशिश की गयी थी. लेकिन टेंडर प्रक्रिया में उलझकर यह योजना ही लटक गयी है. 100 से ज्यादा एंबुलेंस बनने के लिए आयी गाड़ियां जिसकी लागत करोड़ों में है सड़ रहे हैं. लेकिन किसी को इसकी फिक्र नहीं है. योजना बनी थी कि 108 डायल करते ही मरीज को अस्पताल तक ले जाने के लिए एंबुलेंस आ जाएगी. सुविधाओं से लैस एंबुलेंस मरीजों को उनके घर से अस्पताल तक पहुंचाएगी. लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया. दो साल से सिर्फ टेंडर प्रक्रिया में फंस कर यह योजना जमीन पर नहीं तर सकी और इसके अभाव में मरीजों की जान जा रही है.
329 एम्बुलेंस की खरीददारी की गयी
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत 329 एम्बुलेंस की खरीदारी की थी. इस योजना के तहत 40 एडवांस लाइफ स्पोर्ट और 289 बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस संचालित होने थे. 40 एएलएस फोर्स कंपनी की और 289 बीएलएस टाटा कंपनी से खरीदी गयी थी. इसमें से लगभग 102 गाडियां पिछले दो सालों से बेकार पड़ी हुई है. नामकुम के आरसीएच के अलावा रिंग रोड में लगभग 102 की संख्या में एंबुलेंस धूल फांक रही है. बाकि के एंबुलेंस जमशेदपुर स्थित टाटा कंपनी के गैरेज में है.
दो सालों से बेकार पड़ी गाड़ियों के पाटर्स चोरी
रिंग रोड के सिमलिया में फोर्स कंपनी की 40 एम्बुलेंस में से किसी की भी हालत सही नहीं है. टायर सड़ गए हैं और एम्बुलेंस में कई जगह जंग लग गए हैं. एंबुलेंस के पार्ट्स भी चोरी हो गए हैं. सभी गाड़ियों की बैटरी बैठ गयी है. आरसीएच में रखे 60 से ज्यादा एंबुलेंस की हालत भी काफी दयनीय हो गयी है. हालात अब यह है कि अगर इन एंबुलेंस से सरकार सेवा लेना चाहे तो पहले इन्हें लाखों की लागत से बनवाना पड़ेगा.
टेंडर प्रक्रिया में उलझ कर रह गयीं एंबुलेंस
राज्य सरकार ने इन एंबुलेंस के संचालन की जिम्मेदारी टेंडर के आधार पर पहले ही जिकित्सा नामक कंपनी को दे दी है. एम्बुलेंस खरीददारी के बाद सरकार ने फैब्रिकेशन का कार्य के लिए दुसरी एजेंसी के चयन के लिए टेंडर निकाला. इसके लिए पहली बार हुए टेंडर में कोई भी कंपनी क्वालिफाई नहीं कर पायी. दूसरी बार के टेंडर में बाफना नाम की कंपनी ने क्वालिफाई हुई. लेकिन केंद्र सरकार ने इसका रेट अधिक होने का हवाला देकर इस निरस्त कर दिया. इसके बाद तीसरी बार टेंडर फ्लोट हुआ. अबकी बार नटराज मोटर एल वन और बाफना एल टू घोषित हुई. इस आधार पर राज्य सरकार ने नटराज मोटर का चयन फैब्रिकेटिंग काम के लिए किया.
दूसरी कंपनी ने दायर कर दी याचिका
काम नहीं मिलने के बाद बाफना कंपनी ने मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. हाईकोर्ट के जस्टिस अमिताभ गुप्ता ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार के महाधिवक्ता को आदेश दिया कि सरकार के प्रतिनिधि और कंपनी के अधिकारी मिल बैठकर मामले को जल्द से जल्द खत्म करें. कोर्ट के आदेश के बाद तय हुआ कि 329 एम्बुलेंस को फैब्रिकेशन के लिए आधे बाफना और आधे एम्बुलेंस नटराज मोटर को दे दिए जाएं. अब सरकार ने दोनों कंपनियों को आधे आधे एम्बुलेंस देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
मामले पर क्या कहा बाबूलाल मरांडी ने
राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य में दवा और डॉक्टर के बिना मरीज मर रहे है और मरने के बाद शव को ले जाने के लिए राज्य में एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है. सरकार सिर्फ और झूठी घोषनायें करती है साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकार गरीब विरोधी सरकार है.
क्या कहा सुखदेव भगत ने
कांग्रेस विधायक सुखदेव भगत ने भी राज्य की चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गरीबों के साथ इस राज्य में मजाक हो रहा है. एम्बुलेंस नहीं होने से मरीजों की जान भी जा रही है और शव ले जाने के लिए एम्बुलेंस की भी किल्लत है.
क्या कहा स्वास्थ्य मंत्री ने
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद जल्द ही 329 एम्बुलेंस सेवा की शुरूआत कर दी जायेगी. इसके लिए विभाग के अधिकारी लगे हुए है.