पूर्व गवर्नर ने तोड़ी चुप्पी कहा: सरकार को चेताया था, महंगी पड़ सकती है नोटबंदी
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रहे रघुराम राजन ने एक वर्ष के बाद नोटबंदी पर आखिकार अपनी चुप्पी तोड़ ही दी राजन ने कहा कि उन्होंने कभी भी नोटबंदी का समर्थन नहीं किया बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार को नोटबंदी के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी.
राजन ने स्वयं नहीं लिया नोटबंदी के बैठकों में हिस्सा
राजन ने कहा कि उन्होंने सरकार को चेताया था कि इस फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि तक भारी पड़ेंगे.
राजन ने यह सारी बातें अपनी किताब ‘I Do What I Do: On Reforms Rhetoric and Resolve में कही हैं. राजन की किताब के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा उनकी असहमति के बावजूद उनसे इस मुद्दे पर नोट तैयार करने को कहा गया. आरबीआई ने नोट तैयार कर सरकार को सौंप दिए और इसके बाद इस पर निर्णय करने के लिए सरकार ने समिति बनाई. राजन ने खुलासा किया कि समिति में आरबीआई की ओर से सिर्फ करेंसी से जुड़े डिप्टी गवर्नर को शामिल किया गया, इससे जाहिर होता है कि राजन ने स्वयं इन बैठकों में हिस्सा नहीं लिया.
इसी हफ्ते आएगी राजन की यह किताब
राजन ने कहा कि काले धन को सिस्टम में लाने का मकसद पूरा करने के दूसरे तरीके भी सरकार को सुझाए थे. उन्होंने फरवरी 2016 में मौखिक तौर पर अपनी सलाह सरकार को दी और बाद में आरबीआई ने सरकार को एक नोट सौंपा जिसमें उठाए जाने वाले जरूरी कदमों और इसकी समय-सीमा का पूरा खाका पेश किया गया था लेकिन सरकार ने नोटबंदी की राह चुनी. राजन की यह किताब इसी हफ्ते आने वाली है. जिसमें नोटबंदी के पर उन्होंने खुलकर अपनी बात कही. राजन ने लिखा कि ‘आरबीआई ने इस ओर इंगित किया कि अपर्याप्त तैयारी के अभाव में क्या हो सकता है.’
नोटबंदी के पीछे इरादा काफी अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी: रघुराम राजन
हालांकि सरकार ने नोटबंदी के फैसले का यह कहते हुए बचाव किया कि इससे टैक्स बेस बढ़ने से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन में इजाफे तक कई दूसरे फायदे हुए हैं. राजन ने माना कि नोटबंदी के पीछे इरादा काफी अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. उन्होंने कहा, निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है. राजन ने आरबीआई गवर्नर का अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद बतौर फैकल्टी शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में वापसी की. राजन का कार्यकाल 5 सितंबर 2016 को पूरा हो गया था जबकि नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की गई.
नोटबंदी फेल
बता दें कि हाल ही में रिजर्व बैंक ने आंकड़े पेश किए हैं कि नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के पुराने 99 प्रतिशत नोट वापस आ गए हैं. इसके साथ ही आयकर विभाग ने भी कोई उल्लेखनीय काला धन नहीं पकड़ा. जिसके बाद विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए नोटबंदी को पूरी तरह से फेल करार दे दिया. बता दें कि नोटबंदी के बाद देश की विकास दर गिरकर 5.7 पर आ गई है, जोकि नोटबंदी से पहले 7 से ऊपर थी. विपक्ष इस गिरावट के लिए सरकार के नोटबंदी के फैसले को जिम्मेदार ठहरा रहा है.
आम लोग परेशान
नोट बंद करने से देश में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा हो गए हैं. दावा यह किया गया कि बेईमानों और काला धन रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जायगी. लेकिन नोट बंदी के फैसले ने आम आदमी का जीना दूभर हो गया. लोग नोट बदलने और लेने के लिए बैंको की लम्बी-लम्बी लाइनो में लगे हैं; जिसकी वजह से देश भर में दर्जनों लोगो की मौत हो गयी. इन मौतो का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? कई लोगो की शादिया टूट गई. नोट बंद करने के बाद उसका कोई वैकल्पिक बंदोबस्त न होने से अफरा तफरी मच गयी.