किसानी अब मौत का दूसरा नाम बन चुकी है. महाराष्ट्र के खेतों में फसलें नहीं बल्कि किसानों की चितायें जलती हैं. सरकारी आंकड़े भी इसी बात की गवाही दे रहें हैं. दरअसल, किसानों ने इस बार अच्छी बारिश की उम्मीद की थी. मौसम विभाग ने भी इसी का अनुमान लगाया था.
किसानों ने कर्ज लेकर इस उम्मीद में बुआई की कि अच्छी बारिश होगी तो अच्छी पैदावार होगी जिसे बेचकर वो कर्ज के पैसे लौटा देंगे और घर भी चलाएंगे. लेकिन वरुण देवता रूठ गए और खड़ी फसल बर्बाद हो गई. किसानों के सारे सपने टूट गये उस पर कर्ज लौटाने की चिंता उन्हें दिन रात खाए जा रही थी. फिर एक दिन फंदे से लटक कर उन्होंने मौत को गले लगा लिया.
यही कहानी महाराष्ट्र के लगभग हर गांव-कस्बे की है जहां किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं. सरकार द्वारा जारी आंकड़े भी इस बात की तस्दीक दे रहे हैं कि इस साल मराठवाड़ा में किसानों की खुदकुशी के आंकड़े काफी बढ़ गये हैं.
मराठवाड़ा में इस साल 1 जनवरी से 6 अगस्त 2017 तक कुल 546 किसानों ने खुदकुशी की. पिछले एक हफ्ते में करीब 34 किसान खुदकुशी कर चुके हैं. सबसे ज्यादा 107 किसानों ने बीड जिले में खुदकुशी की है. कर्ज लौटाने से परेशान होकर, बरसात न होने के कारण फसलें बर्बाद होने की वजह से किसान खुदकुशी कर रहे हैं.
किसानों के बढ़ते खुदकुशी के मामलों के बाद बीजेपी सरकार भी हरकत में आयी है. बीजेपी सांसद रावसाहेब दानवे ने कहा कि, सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि किसानों को मदद मिले. जिनके पास खेती है सरकार उनको 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल दे रही है. सूखे के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं, हमारी सरकार की पूरी कोशिश है कि आत्महत्या न हो.
मानसून को अभी डेढ़ महीने और बाकी हैं. जानकारों की मानें तो, अगर अच्छी बरसात नहीं हुई तो इस बार भी ना सिर्फ जलसंकट गहरायेगा बल्कि भीषण सूखा भी पड़ सकता है.
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